Meerabai ki rachna - Padawali

पदावली – मीराबाई

हृदय की गहरी पीड़ा, विरहानुभूति और प्रेम की तन्मयता से भरे हुए मीरा के पद राजस्थानी, ब्रज और गुजराती भाषाओं में मिलते हैं

भाग-1

  • अच्छे मीठे फल चाख चाख, बेर लाई भीलणी।
    ऎसी कहा अचारवती, रूप नहीं एक रती।
    नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी।
    जूठे फल लीन्हे राम, प्रेम की प्रतीत त्राण।
    उँच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी।
    ऎसी कहा वेद पढी, छिन में विमाण चढी।
    हरि जू सू बाँध्यो हेत, बैकुण्ठ में झूलणी।
    दास मीरां तरै सोई, ऎसी प्रीति करै जोइ।
    पतित पावन प्रभु, गोकुल अहीरणी।
  • अजब सलुनी प्यारी मृगया नैनों। तें मोहन वश कीधो रे॥ध्रु०॥
    गोकुळ मां सौ बात करेरे बाला कां न कुबजे वश लीधो रे॥१॥
    मनको सो करी ते लाल अंबाडी अंकुशे वश कीधो रे॥२॥
    लवींग सोपारी ने पानना बीदला राधांसु रारुयो कीनो रे॥३॥
    मीरां कहे प्रभु गिरिधर नागर चरणकमल चित्त दीनो रे॥४॥
  • अपनी गरज हो मिटी सावरे हम देखी तुमरी प्रीत॥ध्रु०॥
    आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत॥ ठोर०॥१॥
    ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत॥२॥
    बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत।
    मीरां के प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित॥३॥
  • अब तो निभायाँ सरेगी, बांह गहेकी लाज।
    समरथ सरण तुम्हारी सइयां, सरब सुधारण काज॥
    भवसागर संसार अपरबल, जामें तुम हो झयाज।
    निरधारां आधार जगत गुरु तुम बिन होय अकाज॥
    जुग जुग भीर हरी भगतन की, दीनी मोच्छ समाज।
    मीरां सरण गही चरणन की, लाज रखो महाराज॥
  • अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
    माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
    साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
    सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
    प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
    मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
    संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
    अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
    राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
    अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
    दास मीरां लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥
  • अब तौ हरी नाम लौ लागी।
    सब जगको यह माखनचोरा, नाम धर्‌यो बैरागीं॥
    कित छोड़ी वह मोहन मुरली, कित छोड़ी सब गोपी।
    मूड़ मुड़ाइ डोरि कटि बांधी, माथे मोहन टोपी॥
    मात जसोमति माखन-कारन, बांधे जाके पांव।
    स्यामकिसोर भयो नव गौरा, चैतन्य जाको नांव॥
    पीतांबर को भाव दिखावै, कटि कोपीन कसै।
    गौर कृष्ण की दासी मीरां, रसना कृष्ण बसै॥
  • बंसीवारा आज्यो म्हारे देस। सांवरी सुरत वारी बेस।।
    ॐ-ॐ कर गया जी, कर गया कौल अनेक।
    गिणता-गिणता घस गई म्हारी आंगलिया री रेख।।
    मैं बैरागिण आदिकी जी थांरे म्हारे कदको सनेस।
    बिन पाणी बिन साबुण जी, होय गई धोय सफेद।।
    जोगण होय जंगल सब हेरूं छोड़ा ना कुछ सैस।
    तेरी सुरत के कारणे जी म्हे धर लिया भगवां भेस।।
    मोर-मुकुट पीताम्बर सोहै घूंघरवाला केस।
    मीरा के प्रभु गिरधर मिलियां दूनो बढ़ै सनेस।।
  • अरज करे छे मीरा रोकडी। उभी उभी अरज॥ध्रु०॥
    माणिगर स्वामी मारे मंदिर पाधारो सेवा करूं दिनरातडी॥१॥
    फूलनारे तुरा ने फूलनारे गजरे फूलना ते हार फूल पांखडी॥२॥
    फूलनी ते गादी रे फूलना तकीया फूलनी ते पाथरी पीछोडी॥३॥
    पय पक्कानु मीठाई न मेवा सेवैया न सुंदर दहीडी॥४॥
    लवींग सोपारी ने ऐलची तजवाला काथा चुनानी पानबीडी॥५॥
    सेज बिछावूं ने पासा मंगावूं रमवा आवो तो जाय रातडी॥६॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तमने जोतमां ठरे आखडी॥७॥
  • आई ती ते भिस्ती जनी जगत देखके रोई।
    मातापिता भाईबंद सात नही कोई।
    मेरो मन रामनाम दुजा नही कोई॥ध्रु०॥
    साधु संग बैठे लोक लाज खोई। अब तो बात फैल गई।
    जानत है सब कोई॥१॥
    आवचन जल छीक छीक प्रेम बोल भई। अब तो मै फल भई।
    आमरूत फल भई॥२॥
    शंख चक्र गदा पद्म गला। बैजयंती माल सोई।
    मीरा कहे नीर लागो होनियोसी हो भई॥३॥
  • आओ मनमोहना जी जोऊं थांरी बाट।
    खान पान मोहि नैक न भावै नैणन लगे कपाट॥
    तुम आयां बिन सुख नहिं मेरे दिल में बहोत उचाट।
    मीरा कहै मैं बई रावरी, छांड़ो नाहिं निराट॥
    आओ सहेल्हां रली करां है पर घर गवण निवारि॥
    झूठा माणिक मोतिया री झूठी जगमग जोति।
    झूठा आभूषण री, सांची पियाजी री प्रीति॥
    झूठा पाट पटंबरा रे, झूठा दिखडणी चीर।
    सांची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर॥
    छपन भोग बुहाय देहे इण भोगन में दाग।
    लूण अलूणो ही भलो है अपणे पियाजीरो साग॥
    देखि बिराणे निवांणकूं है क्यूं उपजावे खीज।
    कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज॥
    छैल बिराणो लाखको है अपणे काज न होय।
    ताके संग सीधारतां है भला न कहसी कोय॥
    बर हीणो अपणो भलो है कोढी कुष्टी कोय।
    जाके संग सीधारतां है भला कहै सब लोय॥
    अबिनासीसूं बालबा हे जिनसूं सांची प्रीत।
    मीरा कूं प्रभुजी मिल्या है ए ही भगतिकी रीत॥
  • आज मारे साधुजननो संगरे राणा। मारा भाग्ये मळ्यो॥ध्रु०॥
    साधुजननो संग जो करीये पियाजी चडे चोगणो रंग रे॥१॥
    सीकुटीजननो संग न करीये पियाजी पाडे भजनमां भंगरे॥२॥
    अडसट तीर्थ संतोनें चरणें पियाजी कोटी काशी ने कोटी गंगरे॥३॥
    निंदा करसे ते तो नर्क कुंडमां जासे पियाजी थशे आंधळा अपंगरे॥४॥
    मीरा कहे गिरिधरना गुन गावे पियाजी संतोनी रजमां शीर संगरे॥५॥
  • आज मेरेओ भाग जागो साधु आये पावना॥ध्रु०॥
    अंग अंग फूल गये तनकी तपत गये।
    सद्‌गुरु लागे रामा शब्द सोहामणा॥ आ०॥१॥
    नित्य प्रत्यय नेणा निरखु आज अति मनमें हरखू।
    बाजत है ताल मृदंग मधुरसे गावणा॥ आ०॥२॥
    मोर मुगुट पीतांबर शोभे छबी देखी मन मोहे।
    हरख निरख आनंद बधामणा॥ आ०॥३॥
  • होरी खेलनकू आई राधा प्यारी हाथ लिये पिचकरी॥ध्रु०॥
    कितना बरसे कुंवर कन्हैया कितना बरस राधे प्यारी॥ हाथ०॥१॥
    सात बरसके कुंवर कन्हैया बारा बरसकी राधे प्यारी॥ हाथ०॥२॥
    अंगली पकड मेरो पोचो पकड्यो बैयां पकड झक झारी॥ हाथ०॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर तुम जीते हम हारी॥ हाथ०॥४॥
  • मेरो मनमोहना, आयो नहीं सखी री॥
    कैं कहुं काज किया संतन का, कै कहुं गैल भुलावना॥
    कहा करूं कित जाऊं मेरी सजनी, लाग्यो है बिरह सतावना॥
    मीरा दासी दरसण प्यासी, हरिचरणां चित लावना॥
  • हरिनाम बिना नर ऐसा है। दीपकबीन मंदिर जैसा है॥ध्रु०॥
    जैसे बिना पुरुखकी नारी है। जैसे पुत्रबिना मातारी है।
    जलबिन सरोबर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥१॥
    जैसे सशीविन रजनी सोई है। जैसे बिना लौकनी रसोई है।
    घरधनी बिन घर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥२॥
    ठुठर बिन वृक्ष बनाया है। जैसा सुम संचरी नाया है।
    गिनका घर पूतेर जैसा है। हरिनम बिना नर ऐसा है॥३॥
    कहे हरिसे मिलना। जहां जन्ममरणकी नही कलना।
    बिन गुरुका चेला जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥४॥
  • हरि तुम हरो जन की भीर।
    द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर॥
    भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर।
    हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर॥
    बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर।
    दासि ‘मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर॥
  • हरि गुन गावत नाचूंगी॥ध्रु०॥
    आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
    ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥
  • तो सांवरे के रंग राची। साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
    गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
    गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
    उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
    मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।
  • शरणागतकी लाज। तुमकू शणागतकी लाज॥ध्रु०॥
    नाना पातक चीर मेलाय। पांचालीके काज॥१॥
    प्रतिज्ञा छांडी भीष्मके। आगे चक्रधर जदुराज॥२॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। दीनबंधु महाराज॥३॥
  • सांवरा म्हारी प्रीत निभाज्यो जी॥
    थे छो म्हारा गुण रा सागर, औगण म्हारूं मति जाज्यो जी।
    लोकन धीजै (म्हारो) मन न पतीजै, मुखडारा सबद सुणाज्यो जी॥
    मैं तो दासी जनम जनम की, म्हारे आंगणा रमता आज्यो जी।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बेड़ो पार लगाज्यो जी॥
  • नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव किना०॥ध्रु०॥
    नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तराव॥१॥
    ग्यान ध्यानकी सांगड बांधी। दवरे दवरे आव॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। पकरो उनके पाव॥३॥
  • होरी खेलत हैं गिरधारी।
    मुरली चंग बजत डफ न्यारो।
    संग जुबती ब्रजनारी।।
    चंदन केसर छिड़कत मोहन
    अपने हाथ बिहारी।
    भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग
    स्यामा प्राण पियारी।
    गावत चार धमार राग तहं
    दै दै कल करतारी।।
    फाग जु खेलत रसिक सांवरो
    बाढ्यौ रस ब्रज भारी।
    मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया
    मोहनलाल बिहारी।।
  • सखी, मेरी नींद नसानी हो।
    पिवको पंथ निहारत सिगरी रैण बिहानी हो॥
    सखिअन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो।
    बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय ऐसी ठानी हो॥
    अंग अंग व्याकुल भई मुख पिय पिय बानी हो।
    अंतरबेदन बिरह की कोई पीर न जानी हो॥
    ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो।
    मीरा व्याकुल बिरहणी सुद बुध बिसरानी हो॥

भाग-2

  • आतुर थई छुं सुख जोवांने घेर आवो नंद लालारे॥ध्रु०॥
    गौतणां मीस करी गयाछो गोकुळ आवो मारा बालारे॥१॥
    मासीरे मारीने गुणका तारी टेव तमारी ऐसी छोगळारे॥२॥
    कंस मारी मातपिता उगार्या घणा कपटी नथी भोळारे॥३॥
    मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर गुण घणाज लागे प्यारारे॥४॥
  • राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
    तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।
    निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
    पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।
    बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
    मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।
    मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।
  • आयी देखत मनमोहनकू, मोरे मनमों छबी छाय रही॥ध्रु०॥
    मुख परका आचला दूर कियो। तब ज्योतमों ज्योत समाय रही॥२॥
    सोच करे अब होत कंहा है। प्रेमके फुंदमों आय रही॥३॥
    मीरा के प्रभु गिरिधर नागर। बुंदमों बुंद समाय रही॥४॥
  • आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी।
    चित्त चढ़ो मेरे माधुरी मूरत उर बिच आन अड़ी।
    कब की ठाढ़ी पंथ निहारूँ अपने भवन खड़ी।।
    कैसे प्राण पिया बिन राखूँ जीवन मूल जड़ी।
    मीरा गिरधर हाथ बिकानी लोग कहै बिगड़ी।।
  • आली, म्हांने लागे वृन्दावन नीको।
    घर घर तुलसी ठाकुर पूजा दरसण गोविन्दजी को॥
    निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को।
    रतन सिंघासन आप बिराजैं, मुगट धर्‌यो तुलसी को॥
    कुंजन कुंजन फिरति राधिका, सबद सुनन मुरली को।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बजन बिना नर फीको॥
  • आली , सांवरे की दृष्टि मानो, प्रेम की कटारी है॥
    लागत बेहाल भई, तनकी सुध बुध गई ,
    तन मन सब व्यापो प्रेम, मानो मतवारी है॥
    सखियां मिल दोय चारी, बावरी सी भई न्यारी,
    हौं तो वाको नीके जानौं, कुंजको बिहारी॥
    चंदको चकोर चाहे, दीपक पतंग दाहै,
    जल बिना मीन जैसे, तैसे प्रीत प्यारी है॥
    बिनती करूं हे स्याम, लागूं मैं तुम्हारे पांव,
    मीरा प्रभु ऐसी जानो, दासी तुम्हारी है॥
  • कठण थयां रे माधव मथुरां जाई, कागळ न लख्यो कटकोरे॥ध्रु०॥
    अहियाथकी हरी हवडां पधार्या। औद्धव साचे अटक्यारे॥१॥
    अंगें सोबरणीया बावा पेर्या। शीर पितांबर पटकोरे॥२॥
    गोकुळमां एक रास रच्यो छे। कहां न कुबड्या संग अतक्योरे॥३॥
    कालीसी कुबजा ने आंगें छे कुबडी। ये शूं करी जाणे लटकोरे॥४॥
    ये छे काळी ने ते छे। कुबडी रंगे रंग बाच्यो चटकोरे॥५॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। खोळामां घुंघट खटकोरे॥६॥
  • करुणा सुणो स्याम मेरी, मैं तो होय रही चेरी तेरी॥
    दरसण कारण भई बावरी बिरह-बिथा तन घेरी।
    तेरे कारण जोगण हूंगी, दूंगी नग्र बिच फेरी॥
    कुंज बन हेरी-हेरी॥
    अंग भभूत गले मृगछाला, यो तप भसम करूं री।
    अजहुं न मिल्या राम अबिनासी बन-बन बीच फिरूं री॥
    रोऊं नित टेरी-टेरी॥
    जन मीरा कूं गिरधर मिलिया दुख मेटण सुख भेरी।
    रूम रूम साता भइ उर में, मिट गई फेरा-फेरी॥
    रहूं चरननि तर चेरी॥
  • सखी मेरी नींद नसानी हो।
    पिवको पंथ निहारत सिगरी, रैण बिहानी हो।
    सखियन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो।
    बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय, ऐसी ठानी हो।
    अंग-अंग ब्याकुल भई मुख, पिय पिय बानी हो।
    अंतर बेदन बिरहकी कोई, पीर न जानी हो।
    ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो।
    मीरा ब्याकुल बिरहणी, सुध बुध बिसरानी हो।
  • कहां गयोरे पेलो मुरलीवाळो, अमने रास रमाडीरे॥ध्रु०॥
    रास रमाडवानें वनमां तेड्या मोहन मुरली सुनावीरे॥१॥
    माता जसोदा शाख पुरावे केशव छांट्या धोळीरे॥२॥
    हमणां वेण समारी सुती प्रेहरी कसुंबळ चोळीरे॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर चरणकमल चित्त चोरीरे॥४॥
  • कागळ कोण लेई जायरे मथुरामां वसे रेवासी मेरा प्राण पियाजी॥ध्रु०॥
    ए कागळमां झांझु शूं लखिये। थोडे थोडे हेत जणायरे॥१॥
    मित्र तमारा मळवाने इच्छे। जशोमती अन्न न खाय रे॥२॥
    सेजलडी तो मुने सुनी रे लागे। रडतां तो रजनी न जायरे॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल तारूं त्यां जायरे॥४॥
  • काना चालो मारा घेर कामछे। सुंदर तारूं नामछे॥ध्रु०॥
    मारा आंगनमों तुलसीनु झाड छे। राधा गौळण मारूं नामछे॥१॥
    आगला मंदिरमा ससरा सुवेलाछे। पाछला मंदिर सामसुमछे॥२॥
    मोर मुगुट पितांबर सोभे। गला मोतनकी मालछे॥३॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल चित जायछे॥४॥
  • काना तोरी घोंगरीया पहरी होरी खेले किसन गिरधारी॥१॥
    जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत खेलत राधा प्यारी॥२॥
    आली कोरे जमुना बीचमों राधा प्यारी॥३॥
    मोर मुगुट पीतांबर शोभे कुंडलकी छबी न्यारी॥४॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर चरनकमल बलहारी॥५॥
  • कान्हा कानरीया पेहरीरे॥ध्रु०॥
    जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। खेल खेलकी गत न्यारीरे॥१॥
    खेल खेलते अकेले रहता। भक्तनकी भीड भारीरे॥२॥
    बीखको प्यालो पीयो हमने। तुह्मारो बीख लहरीरे॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरण कमल बलिहारीरे॥४॥
  • कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी, तोरि बनसरी लागी मोकों प्यारीं॥ध्रु०॥
    दहीं दुध बेचने जाती जमुना। कानानें घागरी फोरी॥ काना०॥१॥
    सिरपर घट घटपर झारी। उसकूं उतार मुरारी॥ काना०॥२॥
    सास बुरीरे ननंद हटेली। देवर देवे मोको गारी॥ काना०॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी॥ काना०॥४॥
  • कान्हो काहेकूं मारो मोकूं कांकरी, कांकरी कांकरी कांकरीरे॥ध्रु०॥
    गायो भेसो तेरे अवि होई है। आगे रही घर बाकरीरे॥ कानो॥१॥
    पाट पितांबर काना अबही पेहरत है। आगे न रही कारी घाबरीरे॥ का०॥२॥
    मेडी मेहेलात तेरे अबी होई है। आगे न रही वर छापरीरे॥ का०॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। शरणे राखो तो करूं चाकरीरे॥ कान०॥४॥
  • कायकूं देह धरी भजन बिन कोयकु देह गर्भवासकी त्रास देखाई धरी वाकी पीठ बुरी॥ भ०॥१॥
    कोल बचन करी बाहेर आयो अब तूम भुल परि॥ भ०॥२॥
    नोबत नगारा बाजे। बघत बघाई कुंटूंब सब देख ठरी॥ भ०॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जननी भार मरी॥ भ०॥४॥
  • कारे कारे सबसे बुरे ओधव प्यारे॥ध्रु०॥
    कारेको विश्वास न कीजे अतिसे भूल परे॥१॥
    काली जात कुजात कहीजे। ताके संग उजरे॥२॥
    श्याम रूप कियो भ्रमरो। फुलकी बास भरे॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। कारे संग बगरे॥४॥

भाग-3

  • कालोकी रेन बिहारी। महाराज कोण बिलमायो॥ध्रु०॥
    काल गया ज्यां जाहो बिहारी। अही तोही कौन बुलायो॥१॥
    कोनकी दासी काजल सार्यो। कोन तने रंग रमायो॥२॥
    कंसकी दासी काजल सार्यो। उन मोहि रंग रमायो॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। कपटी कपट चलायो॥४॥
  • किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला॥ध्रु०॥
    जमुनाके नीर गंवा चरावे। खांदे कंबरिया काला॥१॥
    मोर मुकुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत हीरा॥२॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल बलहारा॥३॥
  • बादल देख डरी हो, स्याम! मैं बादल देख डरी।
    श्याम मैं बादल देख डरी।
    काली-पीली घटा ऊमड़ी बरस्यो एक घरी।
    श्याम मैं बादल देख डरी।
    जित जाऊँ तित पाणी पाणी हुई भोम हरी।।
    जाका पिय परदेस बसत है भीजूं बाहर खरी।
    श्याम मैं बादल देख डरी।
    मीरा के प्रभु हरि अबिनासी कीजो प्रीत खरी।
    श्याम मैं बादल देख डरी।
  • कीत गयो जादु करके नो पीया॥ध्रु०॥
    नंदनंदन पीया कपट जो कीनो। नीकल गयो छल करके॥१॥
    मोर मुगुट पितांबर शोभे। कबु ना मीले आंग भरके॥२॥
    मीरा दासी शरण जो आई। चरणकमल चित्त धरके॥३॥
  • कीसनजी नहीं कंसन घर जावो। राणाजी मारो नही॥ध्रु०॥
    तुम नारी अहल्या तारी। कुंटण कीर उद्धारो॥१॥
    कुबेरके द्वार बालद लायो। नरसिंगको काज सुदारो॥२॥
    तुम आये पति मारो दहीको। तिनोपार तनमन वारो॥३॥
    जब मीरा शरण गिरधरकी। जीवन प्राण हमारो॥४॥
  • कुंजबनमों गोपाल राधे॥ध्रु०॥
    मोर मुकुट पीतांबर शोभे। नीरखत शाम तमाल॥१॥
    ग्वालबाल रुचित चारु मंडला। वाजत बनसी रसाळ॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनपर मन चिरकाल॥३॥
  • कुण बांचे पाती, बिना प्रभु कुण बांचे पाती।
    कागद ले ऊधोजी आयो, कहां रह्या साथी।
    आवत जावत पांव घिस्या रे (वाला) अंखिया भई राती॥
    कागद ले राधा वांचण बैठी, (वाला) भर आई छाती।
    नैण नीरज में अम्ब बहे रे (बाला) गंगा बहि जाती॥
    पाना ज्यूं पीली पड़ी रे (वाला) धान नहीं खाती।
    हरि बिन जिवणो यूं जलै रे (वाला) ज्यूं दीपक संग बाती॥
    मने भरोसो रामको रे (वाला) डूब तिर्‌यो हाथी।
    दासि मीरा लाल गिरधर, सांकडारो साथी॥
  • कुबजानें जादु डारा। मोहे लीयो शाम हमारारे॥ कुबजा०॥ध्रु०॥
    दिन नहीं चैन रैन नहीं निद्रा। तलपतरे जीव हमरारे॥ कुब०॥१॥
    निरमल नीर जमुनाजीको छांड्यो। जाय पिवे जल खारारे॥ कु०॥२॥
    इत गोकुल उत मथुरा नगरी। छोड्यायो पिहु प्यारा॥ कु०॥३॥
    मोर मुगुट पितांबर शोभे। जीवन प्रान हमारा॥ कु०॥४॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। बिरह समुदर सारा॥ कुबजानें जादू डारारे कुब०॥५॥
  • कृष्ण करो जजमान॥ प्रभु तुम॥ध्रु०॥
    जाकी किरत बेद बखानत। सांखी देत पुरान॥ प्रभु०२॥
    मोर मुकुट पीतांबर सोभत। कुंडल झळकत कान॥ प्रभु०३॥
    मीराके प्रभू गिरिधर नागर। दे दरशनको दान॥ प्रभु०४॥
  • कृष्णमंदिरमों नाचे तो ताल मृदंग रंग चटकी।
    पावमों घुंगरू झुमझुम वाजे। तो ताल राखो घुंगटकी॥१॥
    नाथ तुम जान है सब घटका मीरा भक्ति करे पर घटकी॥ध्रु०॥
    ध्यान धरे मीरा फेर सरनकुं सेवा करे झटपटको।
    सालीग्रामकूं तीलक बनायो भाल तिलक बीज टबकी॥२॥
    बीख कटोरा राजाजीने भेजो तो संटसंग मीरा हटकी।
    ले चरणामृत पी गईं मीरा जैसी शीशी अमृतकी॥३॥
    घरमेंसे एक दारा चली शीरपर घागर और मटकी।
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जैसी डेरी तटवरकी॥४॥
  • कैसी जादू डारी। अब तूने कैशी जादु॥ध्रु०॥
    मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडलकी छबि न्यारी॥१॥
    वृंदाबन कुंजगलीनमों। लुटी गवालन सारी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलहारी॥३॥
  • कोई कहियौ रे प्रभु आवन की,
    आवनकी मनभावन की।
    आप न आवै लिख नहिं भेजै ,
    बाण पड़ी ललचावन की।
    ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै,
    नदियां बहै जैसे सावन की।
    कहा करूं कछु नहिं बस मेरो,
    पांख नहीं उड़ जावनकी।
    मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे,
    चेरी भै हूँ तेरे दांवन की।
  • कोईकी भोरी वोलो मइंडो मेरो लूंटे॥ध्रु०॥
    छोड कनैया ओढणी हमारी। माट महिकी काना मेरी फुटे॥ को०॥१॥
    छोड कनैया मैयां हमारी। लड मानूकी काना मेरी तूटे॥ को०॥२॥
    छोडदे कनैया चीर हमारो। कोर जरीकी काना मेरी छुटे॥ को०॥३॥
    मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। लागी लगन काना मेरी नव छूटे॥ को०॥४॥
  • कोई देखोरे मैया। शामसुंदर मुरलीवाला॥ध्रु०॥
    जमुनाके तीर धेनु चरावत। दधी घट चोर चुरैया॥१॥
    ब्रिंदाजीबनके कुंजगलीनमों। हमकू देत झुकैया॥२॥
    ईत गोकुल उत मथुरा नगरी। पकरत मोरी भय्या॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बजैया॥४॥
  • कौन भरे जल जमुना। सखीको०॥ध्रु०॥
    बन्सी बजावे मोहे लीनी। हरीसंग चली मन मोहना॥१॥
    शाम हटेले बडे कवटाले। हर लाई सब ग्वालना॥२॥
    कहे मीरा तुम रूप निहारो। तीन लोक प्रतिपालना॥३॥
  • करूं मैं बनमें गई घर होती। तो शामकू मनाई लेती॥ध्रु०॥
    गोरी गोरी बईमया हरी हरी चुडियां। झाला देके बुलालेती॥१॥
    अपने शाम संग चौपट रमती। पासा डालके जीता लेती॥२॥
    बडी बडी अखिया झीणा झीणा सुरमा। जोतसे जोत मिला लेती॥३॥
    कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल लपटा लेती॥४॥
  • खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥
    हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो। एकबार दरसन दे जारे॥१॥
    आप बिहारे दरसन तिहारे। कृपादृष्टि करी जारे॥२॥
    नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो। एक हाम पैन सहजीरे।
    जो दिन ते सखी मधुबन छांडो। ले गयो काळ कलेजारे॥३॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सबही बोल सजारे॥४॥
  • खबर मोरी लेजारे बंदा जावत हो तुम उनदेस॥ध्रु०॥
    हो नंदके नंदजीसु यूं जाई कहीयो। एकबार दरसन दे जारे॥१॥
    आप बिहारे दरसन तिहारे। कृपादृष्टि करी जारे॥२॥
    नंदवन छांड सिंधु तब वसीयो। एक हाम पैन सहजीरे।
    जो दिन ते सखी मधुबन छांडो। ले गयो काळ कलेजारे॥३॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सबही बोल सजारे॥४॥
  • गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय।
    ऊंची नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराय।
    सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय॥
    ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़्‌यो न जाय।
    पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय॥
    कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़ पैंड़ बटमार।
    है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव॥
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।
    जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥
  • गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे॥ध्रु०॥
    स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
    व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
    त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
    मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥
  • गांजा पीनेवाला जन्मको लहरीरे॥ध्रु०॥
    स्मशानावासी भूषणें भयंकर। पागट जटा शीरीरे॥१॥
    व्याघ्रकडासन आसन जयाचें। भस्म दीगांबरधारीरे॥२॥
    त्रितिय नेत्रीं अग्नि दुर्धर। विष हें प्राशन करीरे॥३॥
    मीरा कहे प्रभू ध्यानी निरंतर। चरण कमलकी प्यारीरे॥४॥
  • गोपाल राधे कृष्ण गोविंद॥ गोविंद॥ध्रु०॥
    बाजत झांजरी और मृंदग। और बाजे करताल॥१॥
    मोर मुकुट पीतांबर शोभे। गलां बैजयंती माल॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपाल॥३॥
  • गोबिन्द कबहुं मिलै पिया मेरा॥
    चरण कंवल को हंस हंस देखूं, राखूं नैणां नेरा।
    निरखणकूं मोहि चाव घणेरो, कब देखूं मुख तेरा॥
    व्याकुल प्राण धरत नहिं धीरज, मिल तूं मीत सबेरा।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर ताप तपन बहुतेरा॥
  • घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै॥
    दीपक जोय कहा करूं सजनी, पिय परदेस रहावै।
    सूनी सेज जहर ज्यूं लागे, सिसक-सिसक जिय जावै॥
    नैण निंदरा नहीं आवै॥
    कदकी उभी मैं मग जोऊं, निस-दिन बिरह सतावै।
    कहा कहूं कछु कहत न आवै, हिवड़ो अति उकलावै॥
    हरि कब दरस दिखावै॥
    ऐसो है कोई परम सनेही, तुरत सनेसो लावै।
    वा बिरियां कद होसी मुझको, हरि हंस कंठ लगावै॥
    मीरा मिलि होरी गावै॥
  • घर आवो जी सजन मिठ बोला।
    तेरे खातर सब कुछ छोड्या, काजर, तेल तमोला॥
    जो नहिं आवै रैन बिहावै, छिन माशा छिन तोला।
    ‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, कर धर रही कपोला॥
  • चरन रज महिमा मैं जानी। याहि चरनसे गंगा प्रगटी।
    भगिरथ कुल तारी॥ चरण०॥१॥
    याहि चरनसे बिप्र सुदामा। हरि कंचन धाम दिन्ही॥ च०॥२॥
    याहि चरनसे अहिल्या उधारी। गौतम घरकी पट्टरानी॥ च०॥३॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल से लटपटानी॥ चरण०॥४॥

भाग-4

  • स्याम! मने चाकर राखो जी
    गिरधारी लाला! चाकर राखो जी।
    चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं।
    ब्रिंदाबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं।।
    चाकरी में दरसण पाऊँ सुमिरण पाऊँ खरची।
    भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनूं बाता सरसी।।
    मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, गल बैजंती माला।
    ब्रिंदाबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।।
    हरे हरे नित बाग लगाऊँ, बिच बिच राखूं क्यारी।
    सांवरिया के दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्मी सारी।
    जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी।
    हरी भजनकूं साधू आया ब्रिंदाबन के बासी।।
    मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
    आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा।।
  • चालने सखी दही बेचवा जइंये, ज्या सुंदर वर रमतोरे॥ध्रु०॥
    प्रेमतणां पक्कान्न लई साथे। जोईये रसिकवर जमतोरे॥१॥
    मोहनजी तो हवे भोवो थयो छे। गोपीने नथी दमतोरे॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। रणछोड कुबजाने गमतोरे॥३॥
  • चालो अगमके देस कास देखत डरै।
    वहां भरा प्रेम का हौज हंस केल्यां करै॥
    ओढ़ण लज्जा चीर धीरज कों घांघरो।
    छिमता कांकण हाथ सुमत को मूंदरो॥
    दिल दुलड़ी दरियाव सांचको दोवडो।
    उबटण गुरुको ग्यान ध्यान को धोवणो॥
    कान अखोटा ग्यान जुगतको झोंटणो।
    बेसर हरिको नाम चूड़ो चित ऊजणो॥
    पूंची है बिसवास काजल है धरमकी।
    दातां इम्रत रेख दयाको बोलणो॥
    जौहर सील संतोष निरतको घूंघरो।
    बिंदली गज और हार तिलक हरि-प्रेम रो॥
    सज सोला सिणगार पहरि सोने राखड़ीं।
    सांवलियांसूं प्रीति औरासूं आखड़ी॥
    पतिबरता की सेज प्रभुजी पधारिया।
    गावै दासि कर राखिया॥
  • चालो ढाकोरमा जइज वसिये। मनेले हे लगाडी रंग रसिये॥ध्रु०॥
    प्रभातना पोहोरमा नौबत बाजे। अने दर्शन करवा जईये॥१॥
    अटपटी पाघ केशरीयो वाघो। काने कुंडल सोईये॥२॥
    पिवळा पितांबर जर कशी जामो। मोतन माळाभी मोहिये॥३॥
    चंद्रबदन आणियाळी आंखो। मुखडुं सुंदर सोईये॥४॥
    रूमझुम रूमझुम नेपुर बाजे। मन मोह्यु मारूं मुरलिये॥५॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अंगो अंग जई मळीयेरे॥६॥
  • चालो मन गंगा जमुना तीर।
    गंगा जमुना निरमल पाणी सीतल होत सरीर।
    बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लियो बलबीर॥
    मोर मुगट पीताम्बर सोहे कुण्डल झलकत हीर।
    मीराके प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल पर सीर॥
  • चालो सखी मारो देखाडूं। बृंदावनमां फरतोरे॥ध्रु०॥
    नखशीखसुधी हीरानें मोती। नव नव शृंगार धरतोरे॥१॥
    पांपण पाध कलंकी तोरे। शिरपर मुगुट धरतोरे॥२॥
    धेनु चरावे ने वेणू बजावे। मन माराने हरतोरे॥३॥
    रुपनें संभारुं के गुणवे संभारु। जीव राग छोडमां गमतोरे॥४॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। सामळियो कुब्जाने वरतोरे॥५॥
  • तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर।
    हम चितवत तुम चितवत नाहीं
    मन के बड़े कठोर।
    मेरे आसा चितनि तुम्हरी
    और न दूजी ठौर।
    तुमसे हमकूँ एक हो जी
    हम-सी लाख करोर।।
    कब की ठाड़ी अरज करत हूँ
    अरज करत भै भोर।
    मीरा के प्रभु हरि अबिनासी
    देस्यूँ प्राण अकोर।।
  • छोड़ मत जाज्यो जी महाराज॥
    मैं अबला बल नायं गुसाईं, तुमही मेरे सिरताज।
    मैं गुणहीन गुण नांय गुसाईं, तुम समरथ महाराज॥
    थांरी होयके किणरे जाऊं, तुमही हिबडा रो साज।
    मीरा के प्रभु और न कोई राखो अबके लाज॥
  • आवो सहेल्या रली करां हे, पर घर गावण निवारि।
    झूठा माणिक मोतिया री, झूठी जगमग जोति।
    झूठा सब आभूषण री, सांचि पियाजी री पोति।
    झूठा पाट पटंबरारे, झूठा दिखणी चीर।
    सांची पियाजी री गूदडी, जामे निरमल रहे सरीर।
  • जोसीड़ा ने लाख बधाई रे अब घर आये स्याम॥
    आज आनंद उमंगि भयो है जीव लहै सुखधाम।
    पांच सखी मिलि पीव परसिकैं आनंद ठामूं ठाम॥
    बिसरि गयो दुख निरखि पियाकूं, सुफल मनोरथ काम।
    मीराके सुखसागर स्वामी भवन गवन कियो राम॥
  • झुलत राधा संग। गिरिधर झूलत राधा संग॥ध्रु०॥
    अबिर गुलालकी धूम मचाई। भर पिचकारी रंग॥ गिरि०॥१॥
    लाल भई बिंद्रावन जमुना। केशर चूवत रंग॥ गिरि०॥२॥
    नाचत ताल आधार सुरभर। धिमी धिमी बाजे मृदंग॥ गिरि०॥३॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकू दंग॥ गिरि०॥४॥
  • छोडो चुनरया छोडो मनमोहन मनमों बिच्यारो॥धृ०॥
    नंदाजीके लाल। संग चले गोपाल धेनु चरत चपल।
    बीन बाजे रसाल। बंद छोडो॥१॥
    काना मागत है दान। गोपी भये रानोरान।
    सुनो उनका ग्यान। घबरगया उनका प्रान।
    चिर छोडो॥२॥
    मीरा कहे मुरारी। लाज रखो मेरी।
    पग लागो तोरी। अब तुम बिहारी।
    चिर छोडो॥३॥
  • जमुनाजीको तीर दधी बेचन जावूं॥ध्रु०॥
    येक तो घागर सिरपर भारी दुजा सागर दूर॥१॥
    कैसी दधी बेचन जावूं एक तो कन्हैया हटेला दुजा मखान चोर॥ कैसा०॥२॥
    येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान॥३॥
    है मीरा दरसनकुं प्यासी। दरसन दिजोरे महाराज॥४॥
  • जमुनामों कैशी जाऊं मोरे सैया। बीच खडा तोरो लाल कन्हैया॥ध्रु०॥
    ब्रिदाबनके मथुरा नगरी पाणी भरणा। कैशी जाऊं मोरे सैंया॥१॥
    हातमों मोरे चूडा भरा है। कंगण लेहेरा देत मोरे सैया॥२॥
    दधी मेरा खाया मटकी फोरी। अब कैशी बुरी बात बोलु मोरे सैया॥३॥
    शिरपर घडा घडेपर झारी। पतली कमर लचकया सैया॥४॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाऊ मोरे सैया॥५॥
  • जल कैशी भरुं जमुना भयेरी॥ध्रु०॥
    खडी भरुं तो कृष्ण दिखत है। बैठ भरुं तो भीजे चुनडी॥१॥
    मोर मुगुटअ पीतांबर शोभे। छुम छुम बाजत मुरली॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चणरकमलकी मैं जेरी॥३॥
  • जल भरन कैशी जाऊंरे। जशोदा जल भरन॥ध्रु०॥
    वाटेने घाटे पाणी मागे मारग मैं कैशी पाऊं॥ज० १॥
    आलीकोर गंगा पलीकोर जमुना। बिचमें सरस्वतीमें नहावूं॥ज० २॥
    ब्रिंदावनमें रास रच्चा है। नृत्य करत मन भावूं॥ज० ३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हेते हरिगुण गाऊं॥ज० ४॥
  • जशोदा मैया मै नही दधी खायो॥ध्रु०॥
    प्रात समये गौबनके पांछे। मधुबन मोहे पठायो॥१॥
    सारे दिन बन्सी बन भटके। तोरे आगे आयो॥२॥
    ले ले अपनी लकुटी कमलिया। बहुतही नाच नचायो॥३॥
    तुम तो धोठा पावनको छोटा। ये बीज कैसो पायो॥४॥
    ग्वाल बाल सब द्वारे ठाडे है। माखन मुख लपटायो॥५॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। जशोमती कंठ लगायो॥६॥
  • जसवदा मैय्यां नित सतावे कनैय्यां, वाकु भुरकर क्या कहुं मैय्यां॥ध्रु०॥
    बैल लावे भीतर बांधे। छोर देवता सब गैय्यां॥ जसवदा मैया०॥१॥
    सोते बालक आन जगावे। ऐसा धीट कनैय्यां॥२॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरि लागुं तोरे पैय्यां॥ जसवदा०॥३॥
  • जाके मथुरा कान्हांनें घागर फोरी, घागरिया फोरी दुलरी मोरी तोरी॥ध्रु०॥
    ऐसी रीत तुज कौन सिकावे। किलन करत बलजोरी॥१॥
    सास हठेली नंद चुगेली। दीर देवत मुजे गारी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चितहारी॥३॥
  • जागो बंसी वारे जागो मोरे ललन।
    रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवारे।
    गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे।
    उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े द्वारे ।
    ग्वाल बाल सब करत कोलाहल जय जय सबद उचारे ।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर शरण आया कूं तारे ॥
  • जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं॥
    हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं॥
    तन मन सुरति संजोइ सीस चरणां धरूं।
    जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं॥
    सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं।
    छोड़ी छोड़ी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ।
    बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ॥
    हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
    मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये॥
  • जोगी मेरो सांवळा कांहीं गवोरी॥ध्रु०॥
    न जानु हार गवो न जानु पार गवो। न जानुं जमुनामें डुब गवोरी॥१॥
    ईत गोकुल उत मथुरानगरी। बीच जमुनामो बही गवोरी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल चित्त हार गवोरी॥३॥
  • जो तुम तोडो पियो मैं नही तोडू, तोरी प्रीत तोडी कृष्ण कोन संग जोडू
    ॥ध्रु०॥
    तुम भये तरुवर मैं भई पखिया। तुम भये सरोवर मैं तोरी मछिया॥ जो०॥१॥
    तुम भये गिरिवर मैं भई चारा। तुम भये चंद्रा हम भये चकोरा॥ जो०॥२॥
    तुम भये मोती प्रभु हम भये धागा। तुम भये सोना हम भये स्वागा॥ जो०॥३॥
    बाई मीरा कहे प्रभु ब्रज के बासी। तुम मेरे ठाकोर मैं तेरी दासी॥ जो०॥४॥
  • ज्यानो मैं राजको बेहेवार उधवजी। मैं जान्योही राजको बेहेवार।
    आंब काटावो लिंब लागावो। बाबलकी करो बाड॥जा०॥१॥
    चोर बसावो सावकार दंडावो। नीती धरमरस बार॥ जा०॥२॥
    मेरो कह्यो सत नही जाणयो। कुबजाके किरतार॥ जा०॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। अद्वंद दरबार॥ जा०॥४॥
  • ज्या संग मेरा न्याहा लगाया। वाकू मैं धुंडने जाऊंगी॥ध्रु०॥
    जोगन होके बनबन धुंडु। आंग बभूत रमायोरे॥१॥
    गोकुल धुंडु मथुरा धुंडु। धुंडु फीरूं कुंज गलीयारे॥२॥
    मीरा दासी शरण जो आई। शाम मीले ताहां जाऊंरे॥३॥

भाग-5

  • छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
    ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ।
    वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ।
    जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ।
    अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत।
    मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥
  • डर गयोरी मन मोहनपास, डर गयोरी मन मोहनपास॥१॥
    बीरहा दुबारा मैं तो बन बन दौरी। प्राण त्यजुगी करवत लेवगी काशी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरिचरणकी दासी॥३॥
  • तुम कीं करो या हूं ज्यानी। तुम०॥ध्रु०॥
    ब्रिंद्राजी बनके कुंजगलीनमों। गोधनकी चरैया हूं ज्यानी॥१॥
    मोर मुगुट पीतांबर सोभे। मुरलीकी बजैया हूं ज्यानी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। दान दिन ले तब लै हुं ज्यानी॥३॥
  • म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
    तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा।
    म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
    तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा।।
    म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
    मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा।।
    म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
    मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा।।
    म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।।
  • तुम बिन मेरी कौन खबर ले, गोवर्धन गिरिधारीरे॥ध्रु०॥
    मोर मुगुट पीतांबर सोभे। कुंडलकी छबी न्यारीरे॥ तुम०॥१॥
    भरी सभामों द्रौपदी ठारी। राखो लाज हमारी रे॥ तुम०॥२॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारीरे॥ तुम०॥३॥
  • दूर नगरी, बड़ी दूर नगरी-नगरी
    कैसे मैं तेरी गोकुल नगरी
    दूर नगरी बड़ी दूर नगरी
    रात को कान्हा डर माही लागे,
    दिन को तो देखे सारी नगरी। दूर नगरी…
    सखी संग कान्हा शर्म मोहे लागे,
    अकेली तो भूल जाऊँ तेरी डगरी। दूर नगरी…
    धीरे-धीरे चलूँ तो कमर मोरी लचके
    झटपट चलूँ तो छलकाए गगरी। दूर नगरी…
    मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर,
    तुमरे दरस बिन मैं तो हो गई बावरी। दूर नगरी…
  • तुम लाल नंद सदाके कपटी॥ध्रु०॥
    सबकी नैया पार उतर गयी। हमारी नैया भवर बिच अटकी॥१॥
    नैया भीतर करत मस्करी। दे सय्यां अरदन पर पटकी॥२॥
    ब्रिंदाबनके कुंजगलनमों सीरकी। घगरीया जतनसे पटकी॥३॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। राधे तूं या बन बन भटकी॥४॥
  • तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी॥
    भवसागर में बही जात हौं, काढ़ो तो थारी मरजी।
    इण संसार सगो नहिं कोई, सांचा सगा रघुबरजी॥
    मात पिता औ कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी।
    मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगाओ थारी मरजी॥
  • तुम्हरे कारण सब छोड्या, अब मोहि क्यूं तरसावौ हौ।
    बिरह-बिथा लागी उर अंतर, सो तुम आय बुझावौ हो॥
    अब छोड़त नहिं बड़ै प्रभुजी, हंसकर तुरत बुलावौ हौ।
    मीरा दासी जनम जनम की, अंग से अंग लगावौ हौ॥
  • तेरे सावरे मुख पर वारी। वारी वारी बलिहारी॥ध्रु०॥
    मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडलकी छबि न्यारी न्यारी॥१॥
    ब्रिंदामन मों धेनु चरावे। मुरली बजावत प्यारी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरण कमल चित्त वारी॥३॥
  • मेरी गेंद चुराई। ग्वालनारे॥ध्रु०॥
    आबहि आणपेरे तोरे आंगणा। आंगया बीच छुपाई॥१॥
    ग्वाल बाल सब मिलकर जाये। जगरथ झोंका आई॥२॥
    साच कन्हैया झूठ मत बोले। घट रही चतुराई॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाई॥४॥
  • तोती मैना राधे कृष्ण बोल। तोती मैना राधे कृष्ण बोल॥ध्रु०॥
    येकही तोती धुंडत आई। लकट किया अनी मोल॥तोती मै०॥१॥
    दाना खावे तोती पानी पीवे। पिंजरमें करत कल्लोळ॥ तो०॥२॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरण चित डोल॥ तो०॥३॥
  • तोरी सावरी सुरत नंदलालाजी॥ध्रु०॥
    जमुनाके नीर तीर धेनु चरावत। कारी कामली वालाजी॥१॥
    मोर मुगुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत लालाजी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपालाजी॥३॥
  • तोसों लाग्यो नेह रे प्यारे, नागर नंद कुमार।
    मुरली तेरी मन हर्यो, बिसर्यो घर-व्यौहार॥
    जब तें सवननि धुनि परि, घर आँगण न सुहाइ।
    पारधि ज्यूँ चूकै नहीं, मृगी बेधी दइ आइ॥
    पानी पीर न जानई ज्यों मीन तड़फि मरि जाइ।
    रसिक मधुप के मरम को नहिं समुझत कमल सुभाइ॥
    दीपक को जो दया नहिं, उड़ि-उड़ि मरत पतंग।
    ‘मीरा’ प्रभु गिरिधर मिले, जैसे पाणी मिलि गयो रंग॥
  • थारो विरुद्ध घेटे कैसी भाईरे॥ध्रु०॥
    सैना नायको साची मीठी। आप भये हर नाईरे॥१॥
    नामा शिंपी देवल फेरो। मृतीकी गाय जिवाईरे॥२॥
    राणाने भेजा बिखको प्यालो। पीबे मिराबाईरे॥३॥
  • तो पलक उघाड़ो दीनानाथ,मैं हाजिर-नाजिर कद की खड़ी॥
    साजणियां दुसमण होय बैठ्या, सबने लगूं कड़ी।
    तुम बिन साजन कोई नहिं है, डिगी नाव मेरी समंद अड़ी॥
    दिन नहिं चैन रैण नहीं निदरा, सूखूं खड़ी खड़ी।
    बाण बिरह का लग्या हिये में, भूलुं न एक घड़ी॥
    पत्थर की तो अहिल्या तारी बन के बीच पड़ी।
    कहा बोझ मीरा में करिये सौ पर एक धड़ी॥
  • हे री मैं तो प्रेम दिवानी, मेरो दरद न जाणै कोय।
    सूली ऊपर सेज हमारी सोवण किस विध होय।
    गगन मंडल पर सेज पिया की किस विध मिलणा होय।
    घायलकी गत घायल जाणै जो कोई घायल होय।
    जौहरि की गति जौहरी जाणै दूजा न जाणै कोय।
    दरद की मारी बन-बन डोलूँ बैद मिल्या नहिं कोय।
    मीराँ की प्रभु पीर मिटे जब बैद साँवलिया होय।
  • दरस बिनु दूखण लागे नैन।
    जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन॥
    सबद सुणत मेरी छतियां कांपे, मीठे लागे बैन।
    बिरह कथा कांसूं कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन॥
    कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
    मीरा के प्रभू कब र मिलोगे, दुखमेटण सुखदैन॥
  • दीजो हो चुररिया हमारी। किसनजी मैं कन्या कुंवारी॥ध्रु०॥
    गौलन सब मिल पानिया भरन जाती। वहंको करत बलजोरी॥१॥
    परनारीका पल्लव पकडे। क्या करे मनवा बिचारी॥२॥
    ब्रिंद्रावनके कुंजबनमों। मारे रंगकी पिचकारी॥३॥
    जाके कहती यशवदा मैया। होगी फजीती तुम्हारी॥४॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। भक्तनके है लहरी॥५॥
  • दरस बिन दूखण लागे नैन।
    जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन।
    सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन।
    बिरह व्यथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।
    कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
    मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन।
  • मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।।
    जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।
    तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।।
    छांडि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई।
    संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई।।
    चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई।
    मोती मूंगे उतार बनमाला पोई।।
    अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई।
    अब तो बेल फैल गई आंणद फल होई।।
    दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से बिलोई।
    माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।।
    भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
    दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही।।
  • देखत राम हंसे सुदामाकूं देखत राम हंसे॥
    फाटी तो फूलडियां पांव उभाणे चरण घसे।
    बालपणेका मिंत सुदामां अब क्यूं दूर बसे॥
    कहा भावजने भेंट पठाई तांदुल तीन पसे।
    कित गई प्रभु मोरी टूटी टपरिया हीरा मोती लाल कसे॥
    कित गई प्रभु मोरी गउअन बछिया द्वारा बिच हसती फसे।
    मीराके प्रभु हरि अबिनासी सरणे तोरे बसे॥
  • देखोरे देखो जसवदा मैय्या तेरा लालना, तेरा लालना मैय्यां झुले पालना॥ध्रु०॥
    बाहार देखे तो बारारे बरसकु। भितर देखे मैय्यां झुले पालना॥१॥
    जमुना जल राधा भरनेकू निकली। परकर जोबन मैय्यां तेरा लालना॥२॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। हरिका भजन नीत करना॥ मैय्यां०॥३॥
  • नहिं एसो जनम बारंबार॥
    का जानूं कछु पुन्य प्रगटे मानुसा-अवतार।
    बढ़त छिन-छिन घटत पल-पल जात न लागे बार॥
    बिरछ के ज्यूं पात टूटे, लगें नहीं पुनि डार।
    भौसागर अति जोर कहिये अनंत ऊंड़ी धार॥
    रामनाम का बांध बेड़ा उतर परले पार।
    ज्ञान चोसर मंडा चोहटे सुरत पासा सार॥
    साधु संत महंत ग्यानी करत चलत पुकार।
    दासि मीरा लाल गिरधर जीवणा दिन च्यार॥
  • नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरूड़ो॥
    थांरा देसा में राणा साध नहीं छै, लोग बसे सब कूड़ो।
    गहणा गांठी राणा हम सब त्यागा, त्याग्यो कररो चूड़ो॥
    काजल टीकी हम सब त्याग्या, त्याग्यो है बांधन जूड़ो।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर बर पायो छै रूड़ो॥
  • नही जाऊंरे जमुना पाणीडा, मार्गमां नंदलाल मळे॥ध्रु०॥
    नंदजीनो बालो आन न माने। कामण गारो जोई चितडूं चळे॥१॥
    अमे आहिउडां सघळीं सुवाळां। कठण कठण कानुडो मळ्यो॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। गोपीने कानुडो लाग्यो नळ्यो॥३॥
  • नही तोरी बलजोरी राधे॥ध्रु०॥
    जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे। छीन लीई बांसरी॥१॥
    सब गोपन हस खेलत बैठे। तुम कहत करी चोरी॥२॥
    हम नही अब तुमारे घरनकू। तुम बहुत लबारीरे॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलिहारीरे॥४॥
  • नातो नामको जी म्हांसूं तनक न तोड्यो जाय॥
    पानां ज्यूं पीली पड़ी रे, लोग कहैं पिंड रोग।
    छाने लांघण म्हैं किया रे, राम मिलण के जोग॥
    बाबल बैद बुलाइया रे, पकड़ दिखाई म्हांरी बांह।
    मूरख बैद मरम नहिं जाणे, कसक कलेजे मांह॥
    जा बैदां, घर आपणे रे, म्हांरो नांव न लेय।
    मैं तो दाझी बिरहकी रे, तू काहेकूं दारू देय॥
    मांस गल गल छीजिया रे, करक रह्या गल आहि।
    आंगलिया री मूदड़ी (म्हारे) आवण लागी बांहि॥
    रह रह पापी पपीहडा रे,पिवको नाम न लेय।
    जै कोई बिरहण साम्हले तो, पिव कारण जिव देय॥
    खिण मंदिर खिण आंगणे रे, खिण खिण ठाड़ी होय।
    घायल ज्यूं घूमूं खड़ी, म्हारी बिथा न बूझै कोय॥
    काढ़ कलेजो मैं धरू रे, कागा तू ले जाय।
    ज्यां देसां म्हारो पिव बसै रे, वे देखै तू खाय॥
    म्हांरे नातो नांवको रे, और न नातो कोय।
    मीरा ब्याकुल बिरहणी रे, (हरि) दरसण दीजो मोय॥
  • नाथ तुम जानतहो सब घटकी, मीरा भक्ति करे प्रगटकी॥ध्रु०॥
    ध्यान धरी प्रभु मीरा संभारे पूजा करे अट पटकी।
    शालिग्रामकूं चंदन चढत है भाल तिलक बिच बिंदकी॥१॥
    राम मंदिरमें नाचे ताल बजावे चपटी।
    पाऊमें नेपुर रुमझुम बाजे। लाज संभार गुंगटकी॥२॥
    झेर कटोरा राणाजिये भेज्या संत संगत मीरा अटकी।
    ले चरणामृत मिराये पिधुं होगइे अमृत बटकी॥३॥
    सुरत डोरी पर मीरा नाचे शिरपें घडा उपर मटकी।
    मीरा के प्रभु गिरिधर नागर सुरति लगी जै श्रीनटकी॥४॥
  • नामोकी बलहारी गजगणिका तारी॥ध्रु०॥
    गणिका तारी अजामेळ उद्धरी। तारी गौतमकी नारी॥१॥
    झुटे बेर भिल्लणीके खावे। कुबजा नार उद्धारी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलिहारी॥३॥

भाग-6

  • पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे।
    मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
    लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥
    विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे।
    ‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥
  • पतीया मैं कैशी लीखूं, लीखये न जातरे॥ध्रु०॥
    कलम धरत मेरा कर कांपत। नयनमों रड छायो॥१॥
    हमारी बीपत उद्धव देखी जात है। हरीसो कहूं वो जानत है॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल रहो छाये॥३॥
  • पपइया रे, पिव की वाणि न बोल।
    सुणि पावेली बिरहुणी रे, थारी रालेली पांख मरोड़॥
    चोंच कटाऊं पपइया रे, ऊपर कालोर लूण।
    पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण॥
    थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव मेंला आज।
    चोंच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज॥
    प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे, कागा तू ले जाय।
    जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे, थांरि बिरहस धान न खाय॥
    मीरा दासी व्याकुल रे, पिव पिव करत बिहाय।
    बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी, तुम विन रह्यौ न जाय॥
  • पानी में मीन प्यासी, मोहे सुन सुन आवत हांसी॥ध्रु०॥
    आत्मज्ञान बिन नर भटकत है। कहां मथुरा काशी॥१॥
    भवसागर सब हार भरा है। धुंडत फिरत उदासी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। सहज मिळे अविनाशी॥३॥
  • पायो जी म्हें तो राम रतन धन पायो।
    वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
    जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
    खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
    सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
    ‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥
  • राग दरबारी कान्हरा
    पिय बिन सूनो छै जी म्हारो देस॥
    ऐसो है कोई पिवकूं मिलावै, तन मन करूं सब पेस।
    तेरे कारण बन बन डोलूं, कर जोगण को भेस॥
    अवधि बदीती अजहूं न आए, पंडर हो गया केस।
    रा के प्रभु कब र मिलोगे, तज दियो नगर नरेस॥
  • पपइया रे, पिव की वाणि न बोल।
    सुणि पावेली बिरहुणी रे, थारी रालेली पांख मरोड़॥
    चोंच कटाऊं पपइया रे, ऊपर कालोर लूण।
    पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण॥
    थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव मेंला आज।
    चोंच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज॥
    प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे, कागा तू ले जाय।
    जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे, थांरि बिरहस धान न खाय॥
    मीरा दासी व्याकुल रे, पिव पिव करत बिहाय।
    बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी, तुम विन रह्यौ न जाय॥
  • पिया मोहि दरसण दीजै हो।
    बेर बेर मैं टेरहूं, या किरपा कीजै हो॥
    जेठ महीने जल बिना पंछी दुख होई हो।
    मोर असाढ़ा कुरलहे घन चात्रा सोई हो॥
    सावण में झड़ लागियो, सखि तीजां खेलै हो।
    भादरवै नदियां वहै दूरी जिन मेलै हो॥
    सीप स्वाति ही झलती आसोजां सोई हो।
    देव काती में पूजहे मेरे तुम होई हो॥
    मंगसर ठंड बहोती पड़ै मोहि बेगि सम्हालो हो।
    पोस महीं पाला घणा,अबही तुम न्हालो हो॥
    महा महीं बसंत पंचमी फागां सब गावै हो।
    फागुण फागां खेलहैं बणराय जरावै हो।
    चैत चित्त में ऊपजी दरसण तुम दीजै हो।
    बैसाख बणराइ फूलवै कोमल कुरलीजै हो॥
    काग उड़ावत दिन गया बूझूं पंडित जोसी हो।
    मीरा बिरहण व्याकुली दरसण कद होसी हो॥
  • पिहु की बोलि न बोल पपैय्या॥ध्रु०॥
    तै खोलना मेरा जी डरत है। तनमन डावा डोल॥ पपैय्या०॥१॥
    तोरे बिना मोकूं पीर आवत है। जावरा करुंगी मैं मोल॥ पपैय्या०॥२॥
    मीरा के प्रभु गिरिधर नागर। कामनी करत कीलोल॥ पपैय्या०॥३॥
  • प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय॥
    जल बिन कमल, चंद बिन रजनी। ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी॥
    आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन, बिरह कलेजो खाय॥
    दिवस न भूख, नींद नहिं रैना, मुख सूं कथत न आवै बैना॥
    कहा कहूं कछु कहत न आवै, मिलकर तपत बुझाय॥
    क्यूं तरसावो अंतरजामी, आय मिलो किरपाकर स्वामी॥
    मीरां दासी जनम जनम की, पड़ी तुम्हारे पाय॥
  • प्रगट भयो भगवान॥ध्रु०॥
    नंदाजीके घर नौबद बाजे। टाळ मृदंग और तान॥१॥
    सबही राजे मिलन आवे। छांड दिये अभिमान॥२॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। निशिदिनीं धरिजे ध्यान॥३॥
  • प्रभु जी तुम दर्शन बिन मोय घड़ी चैन नहीं आवड़े।।टेक।।
    अन्न नहीं भावे नींद न आवे विरह सतावे मोय।
    घायल ज्यूं घूमूं खड़ी रे म्हारो दर्द न जाने कोय।।१।।
    दिन तो खाय गमायो री, रैन गमाई सोय।
    प्राण गंवाया झूरता रे, नैन गंवाया दोनु रोय।।२।।
    जो मैं ऐसा जानती रे, प्रीत कियाँ दुख होय।
    नगर ढुंढेरौ पीटती रे, प्रीत न करियो कोय।।३।।
    पन्थ निहारूँ डगर भुवारूँ, ऊभी मारग जोय।
    मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, तुम मिलयां सुख होय।।४।।
  • स्वामी सब संसार के हो सांचे श्रीभगवान।।
    स्थावर जंगम पावक पाणी धरती बीज समान।
    सबमें महिमा थांरी देखी कुदरत के कुरबान।।
    बिप्र सुदामा को दालद खोयो बाले की पहचान।
    दो मुट्ठी तंदुलकी चाबी दीन्हयों द्रव्य महान।
    भारत में अर्जुन के आगे आप भया रथवान।
    अर्जुन कुलका लोग निहारयां छुट गया तीर कमान।
    ना कोई मारे ना कोइ मरतो, तेरो यो अग्यान।
    चेतन जीव तो अजर अमर है, यो गीतारों ग्यान।।
    मेरे पर प्रभु किरपा कीजौ, बांदी अपणी जान।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल में ध्यान।।
  • बरसै बदरिया सावन की
    सावन की मनभावन की।
    सावन में उमग्यो मेरो मनवा
    भनक सुनी हरि आवन की।
    उमड़ घुमड़ चहुँ दिसि से आयो
    दामण दमके झर लावन की।
    नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै
    सीतल पवन सोहावन की।
    मीराके प्रभु गिरधर नागर
    आनंद मंगल गावन की।
  • प्रभुजी थे कहां गया नेहड़ो लगाय।
    छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेमकी बाती बलाय॥
    बिरह समंद में छोड़ गया छो, नेहकी नाव चलाय।
    मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, तुम बिन रह्यो न जाय॥
  • प्रभु तुम कैसे दीनदयाळ॥ध्रु०॥
    मथुरा नगरीमों राज करत है बैठे। नंदके लाल॥१॥
    भक्तनके दुःख जानत नहीं। खेले गोपी गवाल॥२॥
    मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। भक्तनके प्रतिपाल॥३॥
  • प्रभुजी थे कहाँ गया, नेहड़ो लगाय।
    छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेम की बाती बलाय।।
    बिरह समंद में छोड़ गया छो हकी नाव चलाय।
    मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन रह्यो न जाय।।
  • फरका फरका जो बाई हरी की मुरलीया, सुनोरे सखी मारा मन हरलीया॥ध्रु०॥
    गोकुल बाजी ब्रिंदाबन बाजी। और बाजी जाहा मथुरा नगरीया॥१॥
    तुम तो बेटो नंदबावांके। हम बृषभान पुराके गुजरीया॥२॥
    यहां मधुबनके कटा डारूं बांस। उपजे न बांस मुरलीया॥३॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमलकी लेऊंगी बलय्या॥४॥
  • हरि मेरे जीवन प्राण अधार।
    और आसरो नांही तुम बिन, तीनू लोक मंझार।।
    हरि मेरे जीवन प्राण अधार
    आपबिना मोहि कछु न सुहावै निरख्यौ सब संसार।
    हरि मेरे जीवन प्राण अधार
    मीरा कहै मैं दासि रावरी, दीज्यो मती बिसार।।
    हरि मेरे जीवन प्राण अधार
  • फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
    बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
    बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥
    सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
    उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥
    घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे।
    मीराके प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥
  • फिर बाजे बरनै हरीकी मुरलीया सुनोरे, सखी मेरो मन हरलीनो॥१॥
    गोकुल बाजी ब्रिंदाबन बाजी। ज्याय बजी वो तो मथुरा नगरीया॥२॥
    तूं तो बेटो नंद बाबाको। मैं बृषभानकी पुरानी गुजरियां॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरनकी मैं तो बलैया॥४॥
  • बसो मोरे नैनन में नंदलाल।
    मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल।
    अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती-माल।।
    छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
    मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।।
  • फूल मंगाऊं हार बनाऊ। मालीन बनकर जाऊं॥१॥
    कै गुन ले समजाऊं। राजधन कै गुन ले समाजाऊं॥२॥
    गला सैली हात सुमरनी। जपत जपत घर जाऊं॥३॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। बैठत हरिगुन गाऊं॥४॥
  • बड़े घर ताली लागी रे, म्हारां मन री उणारथ भागी रे॥
    छालरिये म्हारो चित नहीं रे, डाबरिये कुण जाव।
    गंगा जमना सूं काम नहीं रे, मैंतो जाय मिलूं दरियाव॥
    हाल्यां मोल्यांसूं काम नहीं रे, सीख नहीं सिरदार।
    कामदारासूं काम नहीं रे, मैं तो जाब करूं दरबार॥
    काच कथीरसूं काम नहीं रे, लोहा चढ़े सिर भार।
    सोना रूपासूं काम नहीं रे, म्हारे हीरांरो बौपार॥
    भाग हमारो जागियो रे, भयो समंद सूं सीर।
    अम्रित प्याला छांडिके, कुण पीवे कड़वो नीर॥
    पीपाकूं प्रभु परचो दियो रे, दीन्हा खजाना पूर।
    मीरा के प्रभु गिरघर नागर, धणी मिल्या छै हजूर॥
  • बन जाऊं चरणकी दासी रे, दासी मैं भई उदासी॥ध्रु०॥
    और देव कोई न जाणूं। हरिबिन भई उदासी॥१॥
    नहीं न्हावूं गंगा नहीं न्हावूं जमुना। नहीं न्हावूं प्रयाग कासी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकी प्यासी॥३॥
  • बन्सी तूं कवन गुमान भरी॥ध्रु०॥
    आपने तनपर छेदपरंये बालाते बिछरी॥१॥
    जात पात हूं तोरी मय जानूं तूं बनकी लकरी॥२॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर राधासे झगरी बन्सी॥३॥
  • बरजी मैं काहूकी नाहिं रहूं।
    सुणो री सखी तुम चेतन होयकै मनकी बात कहूं॥
    साध संगति कर हरि सुख लेऊं जगसूं दूर रहूं।
    तन धन मेरो सबही जावो भल मेरो सीस लहूं॥
    मन मेरो लागो सुमरण सेती सबका मैं बोल सहूं।
    मीरा के प्रभु हरि अविनासी सतगुर सरण गहूं॥
  • बागनमों नंदलाल चलोरी॥ अहालिरी॥ध्रु॥
    चंपा चमेली दवना मरवा। झूक आई टमडाल॥च०॥१॥
    बागमों जाये दरसन पाये। बिच ठाडे मदन गोपाल॥च०॥२॥
    मीराके प्रभू गिरिधर नागर। वांके नयन विसाल॥च०॥३॥
  • भजु मन चरन कँवल अविनासी।
    जेताइ दीसे धरण-गगन-बिच, तेताई सब उठि जासी।
    कहा भयो तीरथ व्रत कीन्हे, कहा लिये करवत कासी।
    इस देही का गरब न करना, माटी मैं मिल जासी।
    यो संसार चहर की बाजी, साँझ पडयाँ उठ जासी।
    कहा भयो है भगवा पहरयाँ, घर तज भए सन्यासी।
    जोगी होय जुगति नहिं जाणी, उलटि जनम फिर जासी।
    अरज करूँ अबला कर जोरें, स्याम तुम्हारी दासी।
    मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, काटो जम की फाँसी।
  • माई मैनें गोविंद लीन्हो मोल॥ध्रु०॥
    कोई कहे हलका कोई कहे भारी। लियो है तराजू तोल॥ मा०॥१॥
    कोई कहे ससता कोई कहे महेंगा। कोई कहे अनमोल॥ मा०॥२॥
    ब्रिंदाबनके जो कुंजगलीनमों। लायों है बजाकै ढोल॥ मा०॥३॥
    मीराके प्रभु गिरिधर नागर। पुरब जनमके बोल॥ मा०॥४॥
  • मेरो मन राम-हि-राम रटै।
    राम-नाम जप लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै।
    जनम-जनम के खत जु पुराने, नामहि‍ लेत फटै।
    कनक-कटोरै इमरत भरियो, नामहि लेत नटै।
    मीरा के प्रभु हरि अविनासी तन-मन ताहि पटै।
  • गली तो चारों बंद हुई हैं, मैं हरिसे मिलूँ कैसे जाय।।
    ऊंची-नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय।
    सोच सोच पग धरूँ जतन से, बार-बार डिग जाय।।
    ऊंचा नीचां महल पिया का म्हांसूँ चढ्यो न जाय।
    पिया दूर पथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय।।
    कोस कोस पर पहरा बैठया, पैग पैग बटमार।
    हे बिधना कैसी रच दीनी दूर बसायो लाय।।
    मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।
    जुगन-जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय।।
  • मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥
    जाके सिर मोरमुगट मेरो पति सोई।
    तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥
    छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई॥
    संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥
    चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।
    मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥
    अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।
    अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई॥
    दूधकी मथनियां बड़े प्रेमसे बिलोई।
    माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥
    भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
    दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥
  • मोरी लागी लटक गुरु चरणकी॥ध्रु०॥
    चरन बिना मुज कछु नही भावे। झूंठ माया सब सपनकी॥१॥
    भवसागर सब सुख गयी है। फिकीर नही मुज तरुणोनकी॥२॥
    मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। उलट भयी मोरे नयननकी॥३॥
  • राणाजी, म्हे तो गोविन्द का गुण गास्यां।
    चरणामृत को नेम हमारे, नित उठ दरसण जास्यां॥
    हरि मंदर में निरत करास्यां, घूंघरियां धमकास्यां।
    राम नाम का झाझ चलास्यां भवसागर तर जास्यां॥
    यह संसार बाड़ का कांटा ज्या संगत नहीं जास्यां।
    मीरा कहै प्रभु गिरधर नागर निरख परख गुण गास्यां॥
  • पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो।। टेक।।
    वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।।
    जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।।
    खायो न खरच चोर न लेवे, दिन-दिन बढ़त सवायो।।
    सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।।
    “मीरा” के प्रभु गिरधर नागर, हरस हरस जश गायो।।
  • नैना निपट बंकट छबि अटके।
    देखत रूप मदनमोहन को, पियत पियूख न मटके।
    बारिज भवाँ अलक टेढी मनौ, अति सुगंध रस अटके॥
    टेढी कटि, टेढी कर मुरली, टेढी पाग लट लटके।
    ‘मीरा प्रभु के रूप लुभानी, गिरिधर नागर नट के॥

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