आरजू तमाम पिघलने लगी हैं,
लो और एक शाम फिर से ढलने लगी है,
हसरत-ए-मुलाकात का शौक है बस,
ये ज़िद भी तो हद से गुजरने लगी है |
by ShayariArt | Oct 3, 2018 | Judai Shayari, Love Shayari | 0 comments
आरजू तमाम पिघलने लगी हैं,
लो और एक शाम फिर से ढलने लगी है,
हसरत-ए-मुलाकात का शौक है बस,
ये ज़िद भी तो हद से गुजरने लगी है |