माना कि तुम

माना कि तुम

माना कि तुम जीते हो ज़माने के लिये, एक बार जी के तो देखो हमारे लिये, दिल की क्या औकात आपके सामने, हम तो जान भी दे देंगे आपको पाने के लिये...
छुपे छुपे से

छुपे छुपे से

छुपे छुपे से रहते हैं..सरेआम नहीं हुआ करते ,कुछ रिश्ते बस एहसास होते हैंउनके नाम नहीं हुआ करते !!
एक आवाज़ दूँ

एक आवाज़ दूँ

यूँ तो एक आवाज़ दूँ.. और बुला लूँ तुम्हें,मगर कोशिश ये है कि.. खामोशी को भी आज़मा लूँ ज़रा…
रग-रग में इस तरह

रग-रग में इस तरह

रग-रग में इस तरह से समा कर चले गये, जैसे मुझ ही को मुझसे चुराकर चले गये, आये थे मेरे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते, इक आग सी वो और लगा कर चले...

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Hindi Shayari - हिन्दी शायरी
माना कि तुम
जो मां सिखाती है
शब्दों के इक्तेफाक में
छुपे छुपे से
एक आवाज़ दूँ
रग-रग में इस तरह