मेरे नसीब का लिक्खा बदल भी सकता था वो चाहता तो मेरे साथ चल भी सकता था ये तूने ठीक किया अपना हाथ खींच लिया मेरे लबों से तिरा हाथ जल भी सकता था मैं ठीक वक़्त में ख़ामोश हो गया वरना मिरे रफ़ीकों का लहेजा बदल भी सकता था merre nasib ka likha badal bhi sakta tha wo chahta...
तन्हा मौसम है और उदास रात हैवो मिल के बिछड़ गये ये कैसी मुलाक़ात है,दिल धड़क तो रहा है मगर आवाज़ नही है,वो धड़कन भी साथ ले गये कितनी अजीब बात...